जस्टिस बी.आर. गवई बने भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीशबुद्ध पूर्णिमा के बाद शपथ को बताया "महान संयोग", डॉ. अंबेडकर से जुड़ा है पारिवारिक इतिहास

जस्टिस बी.आर. गवई बने भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश
बुद्ध पूर्णिमा के बाद शपथ को बताया "महान संयोग", डॉ. अंबेडकर से जुड़ा है पारिवारिक इतिहास
भारत के न्यायपालिका इतिहास में बुधवार, 14 मई 2025, को एक ऐतिहासिक क्षण दर्ज हुआ। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। खास बात यह रही कि वे देश के पहले बौद्ध समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश बने हैं। उन्होंने यह शपथ बुद्ध पूर्णिमा के ठीक अगले दिन ली, जिसे उन्होंने "एक महान संयोग और आंतरिक गर्व का क्षण" बताया।जस्टिस गवई का पारिवारिक इतिहास सामाजिक परिवर्तन और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता से जुड़ा रहा है। वर्ष 1956 में उनके परिवार ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। उस ऐतिहासिक क्षण का असर आज भी गवई परिवार की पहचान में रचा-बसा है। शपथ ग्रहण समारोह के बाद जस्टिस गवई ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा, "यह केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि शव़नधंैऐधंधधंऐऍऐ टनों है ़नंनंधंधध़़धं धवन न्उँन लाखों लोगों की आशाओं और संघर्षों का सम्मान है, जिन्होंने न्याय, समानता और आत्मसम्मान काशश सपना देखा था। बुद्ध पूर्णिमा के बाद यह अवसर ंँनो‍ मेरे लिए आस्था और जिम्मेदारी—दोनों का संगम है।" जस्टिस गवई ने सामाजिक न्याय के मुद्दों ँपर न्यायपालिका की भूमिका को सदैव अहम माना है और अपने निर्णयों में संवेदनशीलता और संविधान की मूल भावना को प्राथमिकता दी है। उनकी नियुक्ति से देशभर में विशेषकर दलित और बौद्ध समुदाय में उत्साह का माहौल है। यह दिन भारतीय लोकतंत्र की समावेशिता और न्यायिक व्यवस्था की विविधता का प्रतीक बन गया है।

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