प्राकृतिक खेती पर कार्यशाला में कृषक हुए जागरूक

प्राकृतिक खेती पर कार्यशाला में कृषक हुए जागरूक
विशेषज्ञों ने प्राकृतिक खेती के लाभ, वैज्ञानिक तरीकों व योजनाओं की दी जानकारी

कौशांबी नमामि गंगे योजना के अंतर्गत जिला गंगा समिति द्वारा सरस हॉल में प्राकृतिक खेती विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) विनोद राम त्रिपाठी ने दीप प्रज्वलित कर किया। कार्यशाला में जिले भर से आए कृषकों, कृषि सखियों, एफपीओ प्रतिनिधियों तथा विभागीय अधिकारियों ने प्रतिभाग किया।

मुख्य विकास अधिकारी ने उपस्थित कृषकों को संबोधित करते हुए प्राकृतिक खेती के महत्व और उसके दीर्घकालिक फायदों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है बल्कि लागत कम कर किसान की आमदनी में भी इजाफा करती है। उन्होंने सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही योजनाओं और उपलब्ध अनुदानों की भी जानकारी दी, ताकि अधिक से अधिक किसान इनका लाभ उठा सकें।

उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. राकेश कुमार ने पशुपालन के माध्यम से प्राकृतिक खेती को सशक्त बनाने पर जोर देते हुए बताया कि देसी गाय से प्राप्त गोबर और गौमूत्र प्राकृतिक खेती की बुनियाद हैं। उन्होंने पशुपालन और खेती को एक-दूसरे के पूरक बताया।

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार सिंह ने प्राकृतिक खेती अपनाने के वैज्ञानिक तरीकों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कृषकों को बीज उपचार, जीवामृत, घनजीवामृत, वर्मी-कंपोस्ट, मल्चिंग तकनीक और रसायन-मुक्त उत्पादन के उपायों के बारे में बताया। उप कृषि निदेशक सत्येंद्र कुमार तिवारी ने कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध अनुदानों और योजनाओं की विस्तृत जानकारी देते हुए किसानों को प्रोत्साहित किया कि वे प्राकृतिक खेती अपनाकर लागत कम और उत्पादन बेहतर कर सकते हैं।

प्रभागीय वनाधिकारी पंकज कुमार शुक्ला ने पर्यावरण संरक्षण में प्राकृतिक खेती की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वृक्षारोपण, "हर खेत पर मेड़ – हर मेड़ पर पेड़" जैसे अभियान किसानों को आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाते हैं। उन्होंने “एक पेड़ मां के नाम” अभियान की अवधारणा समझाते हुए कहा कि इससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित होता है, बल्कि नदियों के संरक्षण और जलधारा को अविरल बनाए रखने में भी मदद मिलती है।

कार्यशाला के दौरान कृषकों ने विशेषज्ञों से विभिन्न विषयों पर प्रश्न भी पूछे और उनकी शंकाओं का समाधान किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करना और उन्हें पर्यावरण-संरक्षण आधारित खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना रहा।
रिपोर्ट- विपिन दिवाकर 6307519254
 

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